बहुत दिनों से दिखाई नहीं दी
क्या बात है , बहुत दिनों से दिखी नहीं कहां गई थी ? कहीं नहीं, यहीं तो थी ( बस ) एक शाम टहलने गई तो कुछ पल हवा के आलिंगन में छिप गई थी एक रात चिंताओं के सिरहाने पर मीठी नींद सो गई थी एक दोपहर थी स्मृतियों के घने जंगल में कुछ पुरानी यादें तलाश रही थी एक दिन रूठ गई थी खुद से खुद ही खुद को मना रही थी कभी बाहर के शोर से कहीं दूर भागने की नाकाम कोशिश कर रही थी तो कभी एकांत के शोर में डूबती जा रही थी फिर एक दिन थी ख़यालों की दुनिया में जो ज़िन्दगी मेरी नहीं उसका मज़ा ले रही थी कभी समुद्र किनारे बैठ कर लहरों की बातें सुन रही थी तो कभी समुद्र के बीचों बीच गुम होती जा रही थी पर्दा खोलो, तो सुबह पर्दा बंद, गहरा अंधेरा फिर पर्दा खोलो तो सुबह फिर गहरा अंधेरा और क्या, कहीं नहीं गई थी, यहीं थी घर पर (जहां हमेशा होती हूं) - प्रावी