घड़ी
कल बाज़ार गई थी
तो यह घड़ी उठा लाई
क्योंकि ऐसा लग रहा है मानो
वक़्त कहीं भागा जा रहा हो
मानो हाथों से फिसल रहा हो
लेकिन रेत की तरह नहीं
पानी की तरह
कल बाज़ार गई थी
तो वक़्त पर कसने के लिए
यह लगाम ले आई
फ़िर एक डिब्बे से निकालकर
दूसरे में इसे सजा दिया
अचानक यह याद आया
कि सर्द सन्नाटे में यह
टिक-टिक, टिक-टिक
मुझे कतई नहीं पसंद
मानो यह आवाज़ मुझे मेरे विचारों से
खींच कर कहीं दूर ले जाती है
यह आवाज़ मुझे भ्रमित कर देती है
इस अनजान शहर के किसी अनजाने कोने में
अनगिनत लोगों के बीच से
यह आवाज़ मुझे सरहद पार ले जाती है
मेरे घर के उस कमरें में
उस सर्द सन्नाटे में
जहां टिक-टिक की यह आवाज़
मुझे पसंद नहीं थी
पर यह दीवार घड़ी
ईमानदार होती है
सिर्फ़ अपने काम से काम रखती है
केवल वक़्त बताती है
चीख चीख कर
वक़्त चुराती नहीं
हाथ में समा जाने वाले उस डब्बे की तरह
जो सब बताने की आड़ में
ना जाने कितने घंटे हमसे छीन कर ले जाता है
इसलिए लाई हूं
यह दीवार घड़ी
वक़्त तो अब भी बड़ी तेज़ी से बीत रहा है
लेकिन टिक-टिक कर के
- प्रावी
Comments
Post a Comment