घर
एक दिन एक कमरा मेरा होगा
मौसम की खिड़की खोलूंगी
बादलों से घिरा सवेरा होगा
एक मेज़ होगी लकड़ी की
कुछ नई कुछ पुरानी सी
बिखरे सपनों और अधूरी कहानियों की
एक रसोई होगी छोटी-सी
अलमारी में जमें ख्यालों पर
गपशप होगी थोड़ी-सी
एक आईना होगा टूटा हुआ
झांकेगी उसमें से धुंधली परछाई
जो सच मांगेगी छिपा हुआ
एक बगीचा होगा मामूली सा
फूल भी होंगे कांटे भी उसमें
बीत गई बातों का गुमशुदा हुई यादों सा
एक आग जलेगी चिमनी में
जो बुझ गई कब की मेरे भीतर
दबा हुआ क्रोध होगा अंगारों में
एक फटी चादर से ढकी खाट भी होगी
उस पर सिलवटें भी होगी लोरियां भी
बचपन वाली नींद भी होगी
आख़िर में एक छत होगी
खुले आसमान तले, गोद में उसकी
चिंता भी होगी उम्मीद भी होगी
एक दिन एक घर मेरा होगा
भूल ना जाऊं लौटने का रास्ता
इसलिए ख़ुद में ख़ुद का बसेरा होगा
(और उस घर में मैं अकेली रहूंगी)
- प्रावीे
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