कोई घर लौट चला

 कोई घर लौट चला

कोई नए मोड़ चला

कोई सपनों की ओर चला

कोई उन्हें पीछे छोड़ चला

कोई बेझिझक दौड़ता चला

कोई ठोकरों के बीच 

डगमगाता चला

कोई भीड़ में शामिल चला

कोई सरफिरा अकेला चला

कोई बेफ़िक्र झूमता चला

कोई ज़िम्मेदारियों पर 

झूला झूलते चला

कोई किस्मत के भरोसे चला

कोई मेहनत थाली में परोसते चला

कोई रास्ते के पत्थर बीनते चला

कोई कांटों की टोकरी बिखेरते चला

कोई बेढोल चाल अपनी चला

कोई दूसरों की तरह मटकता चला

कोई चला राह अनजानी

कोई कर ना सका मनमानी

और मैं भी चला

थोड़ा ठहरता चला, थोड़ा भटकता चला

बिखरता चला, संभलता चला 

चलता चला

                             - प्रावी


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