बसंत का इंतजार
इतनी चुपचाप क्यों बैठी हो ?
बसंत का इंतज़ार कर रही हूं
भूल गए
मतलब ये तूफ़ान से पहले की शांति है
नहीं
ना जाने लोग क्यों भूल जाते हैं
कि तूफ़ान के तुरंत बाद भी
सन्नाटा ही तो होता है
कुछ सुना दो
हमेशा सुनने को आतुर रहते हो
कभी जो सुनाया
उसे समझ भी लिया करो
अकड़ती क्यों हो
ना जाने लोग चुप रहने को
अकड़ना क्यों समझते हैं
ख़ैर,
जाओ अभी
मैं थक गई हूं
इंतज़ार करते - करते ?
हां !
किसका ?
शब्दों का,
ख़ुद का
अगर ना लौटे तो क्या करोगी ?
कुछ पल मायूसी की गोद में सर रखने के बाद
मैं भी लौट जाऊंगी
कहां ?
हर चीज़ का अंत उसके आगाज़ में ही तो होता है
मतलब ?
किताबों में और कहां
( बुद्धू ! )
जहां से शुरुआत की थी
वहीं दोबारा छिप जाऊंगी
वैसे भी क्या फ़र्क पड़ता है
लिखो, ना लिखो
शब्द तो सिर्फ़ बाहर लाते हैं
वरना विचार कहां सुने और समझे जाते हैं
तुम्हें ही देख लो
अभी तक मुझे नहीं समझ पाए
चलो जाओ अब
कुछ पल अकेला छोड़ दो
कितना अकेला रहना होता है तुम्हें
दिन भर इसी कमरे में पड़ी रहती हो
ना जाने लोग क्यों नहीं स्वीकारते
कि अकेले रहने में भी सुकून मिलता है
- प्रावी
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