बचपन की सैर
कभी बचपन की सैर की है ?
बचपन की सैर !
यह कैसे होता है भला ?
आसान है,
बस एक महक, एक आवाज़
एक स्पर्श, एक एहसास
कोई भी, कैसी भी
बस एक याद काफ़ी है
तुमने की है, बचपन की सैर ?
हां, सुनना चाहोगे ?
बिलकुल !
लेकिन मैं सिर्फ़ अल्फ़ाज़ दे सकती हूं तुम्हें
मेरा एहसास नहीं ....
एक मधुर आवाज़ है
जो एक खिड़की से
मुझे मेरे बचपन की ओर ले जाती है
( ऑटो का हॉर्न
बीच गोद में मैं )
और वो आवाज़ गाती है
" भोर भई दिन
चढ़ गया मेरी अम्बे
हो रही जय जयकार "
हर रोज़ वो मधुर आवाज़
ऐसे ही हमें स्कूल तक पहुंचाती है
जब भी मन करता है
उस आवाज़ का हाथ पकड़ कर
टहल आती हूं
जैसे बचपन मैं जाया करती थी
उस लंबे रस्ते पर
वापस लौट कर उस आवाज़ को
सहेज के एक संदूक में रख देती हूं
मेरे बचपन की सबसे मीठी
यादों वाली अलमारी में
क्या कोई भी कर सकता है
बचपन की सैर
हां, बस एक याद काफ़ी है
कोई भी, कैसी भी ।
- प्रावी
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