मैं आज के काम
मैं आज के काम कल पर टाल कर
कल के मलाल लिए बैठती हूं
फिर उसमें कल की चिंताओं को मिला कर
ख़ुद पर सवाल लिए बैठती हूं
पलकों तले ना जाने कितने अश्क दबाएं बैठती हूं
फ़र्क नहीं पड़ता कहकर डायरी के पन्नों में
हिसाब लिए बैठती हूं
अंदर सैलाब दबाकर समंदर सी हलचल लिए बैठती हूं
मैं हमेशा चेहरे पर एक मीठी-सी मुस्कान लिए बैठती हूं
- प्रावी
Comments
Post a Comment