उदासीन
तेरी नम पलकों से
मेरे अश्क क्या सवाल कर सकेंगे
तेरे डगमगाते कदमों को
मेरे झुके कंधे सहारा ना हो सकेंगे
मेरी खामोशी कचोटेगी तेरे कानों को
मेरी समझ कतराएगी उन दायरों से
क्या फिर मेरी नीरस गहराइयों में
डूब जाएगी एक नादान मुस्कान
और जब तक मैं आवाज़ लगाऊंगी
हाथ पकड़ने की हिम्मत जुटाऊंगी
देर हो जाएगी
बहुत देर
वो नादान मुस्कान
दूर जा चुकी होगी
बहुत दूर
एक काली परछाई के पीछे
गहरे सन्नाटे के शोर में
मेरी नसीहतें टकरा कर
वापस आ जाएंगी
और वो उस परछाई के
पीछे-पीछे जाती जाएगी
चिंता और नाराज़गी
एक दूसरे पर इल्ज़ाम मढ़ेंगे
केवल इंतजार कर सकेंगे
उसके लौट आने का
पर शायद वो मुस्कान
मायूसी हो कर लौटेगी
सुकून समझ कर भागी थी
जिस परछाई के पीछे
वो उसकी हक़ीक़त से टकरा कर लौटेगी
उसको रोकना मेरा हक़ ना था
उसकी आमद पर खुश होना मेरे मिजाज़ में न था
फिर मेरी नम पलकें
उसके आसुओं से क्या सवाल कर सकेंगी
( नीरसता के दिए घाव
आख़िर उदासीनता कैसे भरेगी )
- प्रावी
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