मैं ख़ुद ही से जा मिलता हूं
मैं फ़िर तुझे जानने निकल पड़ता हूं
यूं तो उत्सुक मिजाज़ नहीं मेरा
पर अनायत ही तेरी पसंदीदा किताब खोज लेता हूं
गुज़रता हूं उन पंक्तियों के गलियारों से
तेरे क़दमों में अपने क़दम जमा लेता हूं
जिस नज़रिए से तू देखता है इस दुनिया को
मैं वो नज़रिया तलाशने निकल पड़ता हूं
मगर जब-जब तुझे ढूंढने निकलता हूं
मैं ख़ुद ही से जा मिलता हूं
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