मकान
वर्तमान में हर चीज़ के
नए मानक हैं
आधुनिकता की अंधी दौड़ है
घरों की मंज़िलों से
आम आदमी की चौड़ है
अब घरों में कबेलू नहीं लगाए जाते
नाज़ुक होते है ना
तो अब छत पक्की होती है
और उसके नीचे रिश्ते कच्चे
मटके के पानी से सर्दी होती है
और डाइनिंग हॉल में होते हैं ए.सी के चर्चे
अब घरों में ताक नहीं बनाते
न जाने क्यों
शायद अब सामान और मन दोनों छिपा कर रखते हैं
तो अब अलमारियां और तिजोरियां होती हैं
और एक फैंसी की-चैन में चाबियां होती हैं
(फर्नीचर की और लोगों के दिलों की)
उसारी में अब बिस्तर और कंबल सांझा नहीं किए जाते
प्राइवेसी की आड़ में बचपने की होड़ होती है
अब घरों की रसोई में चूल्हा नहीं जलता
सब मॉड्यूलर जो है
तो जो धुआं उठता है और अंगारे सुलगते हैं
वो लोगों के ज़हन में होते हैं
खुले आंगन में अब खाट नहीं होती
दो लोगों की आपस में बात नहीं होती
अब खिड़कियां ज़रूर बड़ी होती हैं
पहले छोटी हुआ करती थी
पर उनसे एक घर के बर्तन
दूसरे घर नहीं पहुंच पाते
इन बड़े-बड़े मकानों में
दो से ज़्यादा लोग नहीं समाते
अब इन आधुनिक नगरों में
घर नहीं बनते
मकान बनते हैं
और उन मकानों में इंसान नहीं रहते
लोग रहते हैं
- प्रावी
ऐसे मकान अब सिर्फ यादों में बसे मिलते है ।
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